सीएम को हुआ कोरोना लेकिन इलाज आम आदमी सा। जानिए क्यों ?

भोपाल . सियासत में बड़ा मुक़ाम हासिल करने के बाद. अक्सर लोग अपनी जड़ों को भूल जाते है . गुरुर और अक्खडपन . स्वभाव बन जाते है . लेकिन देश की सियासत में एक शख़्स ऐसा भी है . जो कि राज्य के सर्वोच्च पद पर पहुँचने के बाद भी . उनकी सहजता और विनम्रता अब भी बरकरार है . सरल इतने की खुद कोरोना पॉज़िटिव होने के बाद भी . आम लोगों की तरह अस्पताल में भर्ती हो गये .!! जी हाँ हम बात कर रहे है मप्र के मुख्यमंत्री- शिवराज सिंह चौहान की । एक ऐसा शख़्स जिसे सत्ता का सुरूर ज़रा भी नहीं छू पाया ।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चाहते तो स्वास्थ्य विभाग की हर सुविधा उनके घर पर हो सकती थी। लेकिन उन्होंने अपना इलाज अस्पताल में कराना उचित समझा और भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती हो गए, जहां कोरोना से पीड़ित आम आदमी इलाज करवा रहा है. तेरह साल से ज्यादा समय तक प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के बाद भी आम आदमी की तरह जीवन जीने की इसी अदा पर पूरा प्रदेश शिवराज सिंह का कायल है. शुरू से ही जमीन से जुड़े रहने वाले स्वभाव के कारण बच्चे, युवा, बुजुर्ग सहित महिलाओं को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने घर जैसे सदस्य लगते हैं. बच्चों में विशेषकर बेटियां उन्हें यूँ ही ‘मामा’ कहकर नहीं बुलातीं।

पाँव पाँव वाले भैया
शिवराज ने खुद को हमेशा किसान का बेटा माना। जब वे पहली बार सांसद बने तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। अपने संसदीय क्षेत्र में पहचान बनाए रखने और लोगों को जोड़ने के लिए वे लगातार दौरे करते रहे। कई बार अलग-अलग मुद्दों पर पूरे संसदीय क्षेत्र की पदयात्राएं भी कीं। यही वजह है कि विदिशा संसदीय क्षेत्र में वे ‘पांव-पांव वाले भैया’ नाम से पहचाने जाने लगे।

मिट्टी से जुड़े नेता हैं शिवराज
शिवराज का जन्म एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ। वे कई दफा गर्व से ये बात कहते नज़र आते हैं। वे भले ही आज सफलता की ऊँचाई पर क्यों न पहुंच गए हों, माटी से उनका जुड़ाव आज भी नज़र आ जाता है। अपने संस्कार और संस्कृति से उन्हें इतना लगाव है कि पिता के निधन के बाद जब वे अंतिम संस्कार के लिए अपने गांव जैत पहुंचे तो सारे रीति-रिवाज़ आम आदमी की तरह निभाए। उस वक़्त जितने बड़े नेता और वीआईपी उनके पैतृक गाँव पहुंचे शिवराज ने वहीं उनकी व्यवस्था की।

बचपन से जनसेवक
9 वर्ष की आयु से ही शिवराज जनहित कार्य करने लगे थे। जिसके चलते उन्होंने अपने गांव के कृषि मजदूरों के हितों की रक्षा हेतु संघर्ष किया। वह 70 के दशक में अपनी किशोरावस्था में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हुए। उनका राजनीतिक जीवन कॉलेज स्तर से शुरू हुआ और पार्टी स्तर पर उन्होंने कई प्रतिष्ठित पदों पर निष्ठापूर्वक कार्य किया। वह 2005 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने कृषि और किसानों के लिए काफी काम किया और वर्ष 2011-12 में गेहूं का सबसे अधिक उत्पादन करने के लिए “कृषि कर्मण पुरस्कार” सम्मान हासिल किया। उसी वर्ष उन्हें एनडीटीवी द्वारा ‘इंडियन ऑफ़ थे ईयर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2012 में, उन्हें मध्य प्रदेश लोक सेवा गारंटी अधिनियम के लिए संयुक्त राष्ट्र लोक सेवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

एक कर्मठ कोरोना वारियर
कोरोना की महामारी ने देश को बुरी तरह से जकड़ना शुरू कर दिया है। सीएम शिवराज सिंह चौहान पहले दिन से ही इस महामारी को काबू करने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। उनकी कोशिश किसी भी कोरोना वारियर से कम नहीं रही। लगातार कोरोना समीक्षा बैठक हो या लोगों में सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइज़र का इस्तेमाल और मास्क पहनने को लेकर जागरूकता लाना। वे एक योद्धा की तरह खुद मैदान में उतरकर जंग लड़ रहे हैं। हाल ही में इस जंग में खुद भी कोरोना का शिकार होने के बावजूद शिवराज अपने कर्तव्यों को पूरा करने में जुटे हुए हैं। अस्पताल में रहते हुए ही कोरोना की समीक्षा बैठक जैसे ज़रूरी काम वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये निबटा रहे हैं। हम कामना करते हैं कि वे जल्द स्वस्थ होकर एक बार फिर पूरी ऊर्जा के साथ प्रदेश के हित के लिए कार्य कर सकें।

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