
इंडिया फर्स्ट न्यूज़। भोपाल। 14 अगस्त 1947 की आधी रात को… यानी 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो चुका था, लेकिन भोपाल में रियासत का दौर था। 15 अगस्त के सूरज की किरणें जैसे ही भारत की सरजमीं पर पड़ीं, लोग हाथों में तिरंगा लेकर संसद की ओर बढ़ने लगे। दिल्ली की हर सड़क पर कुंभ के मेले जैसा माहौल था। लोग एक-दूसरे को मिठाई खिला रहे थे। इन सबके इतर देश के कुछ इलाके ऐसे थे, जो स्वतंत्र भारत में शामिल होने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनमें से एक भोपाल भी था।
आजादी के समय देश में छोटी-बड़ी 565 रियासतें थीं। इनमें से 500 रियासतों ने आजादी के साथ ही भारत में विलय होने का फैसला कर लिया था, लेकिन 5 रियासतों ने भारतीय संघ में शामिल होने से साफ मना कर दिया। इनमें से एक भोपाल भी थी। जहां 15 अगस्त पर उत्सव मनाना तो दूर तिरंगा फहराने पर भी सख्त पाबंदी थी। जो लाेग कोशिश कर रहे थे उन्हें या तो गोली मार दी जा रही या जेलों में ठूंस दिया जा रहा था। ऐसी दमघोंटू स्थिति के बीच भी यहां के लोगों ने नवाबी शासन के खिलाफ मोर्चा खोले रखा। आखिरकार 1 जून 1949 को भारतीय संघ में विलीनीकरण के बाद भोपाल, भारत का हिस्सा बना।
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