
इंडिया फर्स्ट ब्यूरों।। 1964 के संविधान को उन अफगान लोगों ने तैयार किया था, जिन्होंने विदेशों में पढ़ाई की थी. अब तालिबान इसे अपनाना चाहता है.
तालिबान ने ऐलान किया है कि वो अफगानिस्तान पर शासन करने के लिए 1964 के संविधान को अस्थायी रूप से अपनाएगा. लेकिन कुछ भी शरिया कानून के खिलाफ होने पर इसमें कुछ बदलाव भी किया जाएगा. 15 अगस्त को तालिबान की अफगानिस्तान की सत्ता में दूसरी बार वापसी हुई. तालिबान ने एक कैबिनेट की घोषणा भी कर दी, जिसमें महिलाओं को प्रतिनिधित्व नहीं रहा. वहीं, इसने अभी तक ये भी नहीं बताया है कि सरकार में महिलाओं और मीडिया को क्या अधिकार दिए जाएंगे. इस वजह से दुनियाभर के देश शक भरी निगाहों से इस सरकार को देख रहे हैं.
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वहीं, अभी तक तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी नहीं मिली है. दूसरी ओर, तालिबान के कार्यवाहक न्याय मंत्री ने एक बयान जारी कर कहा कि वे 1964 के संविधान को अपनाएंगे. इस संविधान को उन अफगान लोगों ने तैयार किया था, जिन्होंने विदेशों में पढ़ाई की थी. अफगानिस्तान के पास चार संविधान हैं और उन चारों में से ये संविधान सबसे अधिक महत्वाकांक्षी है. अफगानिस्तान के आखिरी राजा मोहम्मद जहीर शाह को संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए कमीशन दिया गया था.
अफगानिस्तान के लिए 1964 के संविधान के क्या मायने हैं?
संविधान ने अफगानिस्तान संसद के दो सदनों का निर्माण किया. निचले सदन के सदस्यों का चुनाव किया जाता था.
- संविधान ने संसद से कैबिनेट के बीच एक अंतर बनाए रखा. कैबिनेट को राजा की शक्तियों का प्रयोग करना था, जबकि सांसद मंत्री पद हासिल नहीं कर सकते थे.
- 1964 के संविधान में महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया गया था.
- इस संविधान में धर्म की स्वतंत्रता भी दी गई थी. इसमें कहा गया था कि गैर-मुस्लिम नागरिक कानूनों द्वारा निर्धारित धार्मिक अनुष्ठानों को करने के लिए स्वतंत्र थे.
- संविधान में कहा गया कि शिक्षा प्रत्येक अफगान नागरिक का अधिकार है और इसे निःशुल्क प्रदान किया जाएगा.
- संविधान ने मंत्रियों की अध्यक्षता में कई प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित एक केंद्रीकृत प्रशासन के लिए नियम निर्धारित किए.
- वहीं, राजा के पास युद्ध का ऐलान करने से लेकर अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर करने तक, हर चीज के सर्वोच्च अधिकार थे. अब ये अधिकार तालिबान के सुप्रीमो को मिल सकता है.
ये संविधान 1964 और 1973 के बीच लागू किया गया था, जिसे अक्सर अफगानिस्तान का स्वर्ण युग कहा जाता है. इसके बाद तख्तापलट कर इसे रद्द कर दिया गया. 2001 में अमेरिकी हमले के बाद एक नए संविधान का मसौदा तैयार किया गया, जिसे तालिबान ने पश्चिमी प्रभाव होने का दावा करते हुए खारिज कर दिया है.