
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा के स्तर में भारी गिरावट पर चिंता व्यक्त की है. प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों के वेतन से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अंतिम रूप से हारने वाला मासूम बच्चा है जो सरकारी प्राथमिक स्कूलों में भर्ती होने पर अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा की उम्मीद करता है. ये स्कूल न केवल बच्चे को पढ़ना-लिखना और अंकगणित सिखाता है, बल्कि सही-गलत, नैतिक-अनैतिक और सबसे ऊपर जीवन में अनुशासन सीखने के लिए समाज-राष्ट्र के लिए उपयोगी बनने के लिए के बीच अंतर करने की क्षमता भी सिखाता है. ये मूलभूत लक्षण एक बच्चे में तभी पैदा हो सकते हैं जब उसको पढ़ाने वाले शिक्षक चरित्र, आचरण, व्यवहार में उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले हों और मानवीय मूल्य हों.
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार और उसके पदाधिकारियों सहित सांसदों से अनुरोध किया कि वैधानिक या अन्य प्रावधानों के माध्यम से वे किसी भी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रवेश पाने वाले व्यक्ति के लिए आवश्यक योग्यता मानदंड के रूप में न्यूनतम योग्यता और योग्यता के असाधारण उच्च मानकों को शामिल करें.
हाई कोर्ट ने कहा कि सरकारी क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षक के पद से जुड़े वेतन, भत्ते और अनुलाभ आकर्षक होने चाहिए. न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा, ‘वास्तव में एक प्राथमिक शिक्षक सरकार के तहत सबसे अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों में से एक होने चाहिए, ताकि समाज में उपलब्ध सबसे मेधावी लोगों को आकर्षित किया जा सके और उनमें से सर्वश्रेष्ठ गुणों वालों को अंततः शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जा सके.’