
इंडिया फ़र्स्ट ।
पाकिस्तान में सरकार और प्रतिबंधित संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के बीच टकराव बढ़ गया है। फ्रांस के एम्बेसडर को मुल्क से निकालने समेत 4 मांगों को लेकर TLP ने इस्लामाबाद मार्च शुरू कर दिया है। इस दौरान हुई हिंसक झड़प में 4
पुलिसकर्मियों की मौत हो गई है। करीब 250 लोग घायल हुए हैं। इमरान सरकार ने 3 शर्तें मान ली हैं, लेकिन वो फ्रांस के राजदूत को देश से निकालने के लिए लिए तैयार नहीं है, जबकि TLP की मुख्य मांग यही है।
मार्च को रोकने के लिए सरकार ने सड़कों पर कंटेनर्स खड़े कर दिए हैं। कई जगह सड़क के किनारे बड़े-बड़े गड्ढे खोद दिए गए हैं ताकि TLP की गाड़ियां वहां से नहीं निकल सकें। हालांकि मार्च में शामिल ज्यादातर लोग पैदल हैं।
इस बीच, इन्फॉर्मेशन मिनिस्टर फवाद चौधरी ने कहा है कि लब्बैक को अब दूसरे आतंकी संगठनों की तरह ही माना जाएगा और उससे वही बर्ताव किया जाएगा जो आतंकी संगठनों से किया जाता है।
एक मांग पर टकराव
TLP और इमरान सरकार के बीच 3 बातों पर सहमति बन गई है, लेकिन एक मांग पर टकराव जारी है। TLP का कहना है कि पैगम्बर की बेअदबी के मामले में फ्रांस के राजदूत को देश से निकाला जाए। सरकार का कहना है कि अगर ऐसा किया गया तो मुल्क को इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। यूरोपीय देश पाकिस्तान के खिलाफ हो जाएंगे। जीएसपी प्लस स्टेटस खत्म हो जाएगा और पाकिस्तानियों का यूरोप जाना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी तरफ, TLP झुकने को तैयार नहीं है।
सरकार का कहना है कि वो 6 महीने से जेल में बंद TLP चीफ साद रिजवी को रिहा करने के लिए तैयार है। TLP पर बैन भी खत्म किया जाएगा और उसके लोगों को रिहा भी कर दिया जाएगा, लेकिन TLP फ्रांस के राजदूत को निकालने की मांग पर अड़ी हुई है।
TLP के पाकिस्तान में लाखों समर्थक हैं। करीब 20 हजार तो इस्लामाबाद मार्च में ही शामिल हो रहे हैं। अगर सरकार ने इन पर जोर आजमाइश करनी चाही तो हिंसा भड़क सकती है। लाहौर में पिछले दिनों कई पुलिसवाले ऐसी ही झड़प में मारे गए थे। लिहाजा, सरकार सियासी तौर पर भी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। रावलपिंडी और इस्लामाबाद के बीच सिर्फ 28 किलोमीटर का फासला है। अगर TLP के लोग इस्लामाबाद पहुंच गए तो सरकार के लिए तमाम मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।
Read More : PAK की जीत पर UP में जश्न मनाने वालों पर योगी सरकार का बड़ा एक्शन, देशद्रोह का चलेगा केस
होम मिनिस्टर शेख रशीद कह रहे हैं कि मामला शांति से सुलझ जाएगा। हालांकि TLP का आरोप है कि रशीद की बयानबाजी से ही मामला बिगड़ रहा है। रशीद के मुताबिक, सरकार TLP की एक मांग को छोड़कर तमाम मांगें मानने को तैयार है।
TLP की धमकी
लब्बैक के कार्यकर्ता मुरीदके कैम्प तक पहुंच चुके हैं। यहां से इस्लामाबाद महज 14 किलोमीटर दूर है। कुछ लोगों का कहना है कि TLP को फौज का गुपचुप समर्थन हासिल है और वो इमरान को कुर्सी से हटाना चाहती है। आईएसआई चीफ की नियुक्ति के मामले पर इमरान और फौज के बीच गंभीर मतभेद पैदा हो चुके हैं।
TLP ने साफ कर दिया है कि अगर सरकार ने पुलिस या दूसरे सुरक्षा बलों के जरिए उसे रोकने की कोशिश की तो बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है और इसकी जिम्मेदार सरकार होगी।
आगे क्या?
अगर TLP के लोग इस्लामाबाद पहुंच गए तो यहां की कानून व्यवस्था तो अपनी जगह, बाकी चीजें भी ठप हो सकती हैं, क्योंकि चंद घंटे में लाखों लोग यहां पहुंच चुके होंगे। लाहौर में 6 महीने पहले इसी तरह के हालात पैदा हो चुके हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान में बुधवार रात से गुरुवार तक हालात काफी खतरनाक नजर आ रहे हैं।
इमरान ने इस मसले पर कैबिनेट मीटिंग की है, लेकिन अब तक यह साफ नहीं है कि फ्रांस के राजदूत को मुल्क से निकाला जाएगा या नहीं, इसके बिना TLP झुकने को तैयार नहीं है।
Read More : ‘पंजाब में नई पार्टी बनाऊंगा’, विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से अलग होकर बोले अमरिंदर सिंह
2017 में बनी थी TLP
TLP की स्थापना खादिम हुसैन रिजवी ने 2017 में की थी। वे पंजाब के धार्मिक विभाग के कर्मचारी थे और लाहौर की एक मस्जिद के मौलवी थे, लेकिन साल 2011 में जब पंजाब पुलिस के गार्ड मुमताज कादरी ने पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या की तो उन्होंने कादरी का खुलकर समर्थन किया। जिसके बाद उन्हें नौकरी से निष्कासित कर दिया गया।
जब 2016 में कादरी को दोषी करार दिया गया तो TLP ने ईश निंदा और पैगंबर के ‘सम्मान’ के मुद्दों पर देशभर में विरोध शुरू किया। खादिम ने फ्रांस को एटम बम से उड़ाने की वकालत की थी। पिछले साल अक्टूबर में खादिम रिजवी की मौत हो गई थी। खादिम रिजवी की फालोइंग पाकिस्तान में इतनी ज्यादा थी कि कहते हैं कि लाहौर में उनके जनाजे में लाखों की भीड़ उमड़ी थी। खादिम रिजवी की मौत के बाद उनके बेटे साद रिजवी ने TLP पर कब्जा जमा लिया।
कहां फंसी सरकार?
TLP की मांग है कि फ्रांस में पैगम्बर साहब का अपमान हुआ था, इसलिए पाकिस्तान से फ्रेंच एम्बेसडर को फौरन निकाला जाए। इमरान सरकार ने इस पर संसद में बहस कराने का वादा किया था। बिल लाने के पहले ही TLP प्रमुख को 12 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया गया था। TLP मजहबी और सियासी पार्टी है। पिछले चुनाव में उसे 24 लाख वोट मिले थे। इमरान सरकार फ्रांस के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकती, क्योंकि इससे यूरोपियन यूनियन और अमेरिका उसके खिलाफ हो जाएंगे। इधर, सियासी मजबूरियों के चलते TLP पर बैन तो लगा दिया गया, लेकिन सरकार और फौज सख्त कदम उठाने से डर रही हैं।
indiafirst.online