क्या विंध्या वैली को प्राईवेट हाथों में सौंपने की तैयारी ? स्पेशल रिपोर्ट ।

 मध्यप्रदेश सरकार द्वारा  स्व सहायता समूहों के उत्पाद बाज़ार में उपलब्ध कराने के लिए, विंध्या वैली परियोजना शुरु की थी। इसके तहत, ब्रांड विकसित कर, ग्रामीण क्षेत्र के उत्पादकों को बाज़ार उपलब्ध कराना और उचित मूल्य दिलाने के साथ साथ, रोज़गार को बढ़ावा देना भी था। लेकिन विंध्य वैली प्रोजेक्ट, अब दम तोड़ने लगा है। घटिया प्रबंधन और सरकार की उदासीनता से, मार्केट से लगभग ये गायब हो चला है।आलम ये है कि, साल 2013- 14 में जहां, विंध्य वैली प्रोडेक्ट्स की बिक्री करीब छै करोड़ रुपए थी, वही साल 2016-17 में ये घटकर महज़ दो करोड़ छियालिस लाख रह गई। वही इस साल, वर्ष 2017-18 में तो बिक्री घटकर महज़ नब्बे लाख रह गई है। हैरानी की बात ये है कि, इस दौरान ना तो अधिकारियों ने और ना ही सरकार ने, इसे ओर ध्यान देने की कोशिश की। लेकिन, इस दौरान विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने कागज़ों पर खर्चे करना जारी रखा या यूं कहा जाये, कम्बल ओढ़कर घी पीने से ही वास्ता रखा।कभी साठ से भी ज्यादा प्रोडेक्ट्स की ब्रांडिग करने वाला विंध्य वैली, अब अपने प्रोडेक्ट्स को सरकारी महकमों तक भी नही पहुंचा रहा है। सूत्रों की माने तो इसकी एक बड़ी वजह, कमीशनख़ोरी है। गौर करने वाली बात ये भी है कि, विंध्य वैली के कही बाद मार्केट में आये, बाबा रामदेव के उत्पादों ने, नेचुरल प्रोडेक्ट्स के मार्केट में अच्छी ख़ासी पैठ बना ली है। तो क्या एक रणनीति के तहत, सरकार के ही कुछ अधिकारी, विंध्या वैली को प्राईवेट हाथों में सौंपने के तर्क तैयार कर रहे है। इंडिया फर्स्ट की नज़र, इस मुद्दे पर लगातार बनी रहेगी। नमस्कार।

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