
इंडिया फर्स्ट न्यूज़ ब्यूरो | उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन रहा है, उसने योगी सरकार की ताकत को और बढ़ा दिया है. यूपी में 75 जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावों में भाजपा समर्थित उम्मीदवारों ने 66 में जीत हासिल की. इनमें से 21 निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी शामिल है. वाराणसी, वास्तव में उत्तर प्रदेश में भाजपा के विश्वास का प्रतीक है, जो भारत की सत्ता हासिल करने का प्रवेश द्वार है. राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी की वाराणसी यात्रा का अपना महत्व है. यूपी में अगले साल फरवरी से मार्च के बीच चुनाव होने की संभावना है. साल 2004 को छोड़ दें तो 1989 से वाराणसी हमेशा से भाजपा के साथ रहा है. 1991 के बाद से वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र में जब-जब चुनाव हुए हर बार मतदान 50 प्रतिशत से कम रहा, लेकिन चुनावी मैदान में पीएम मोदी के उतरने के बाद से वाराणसी का माहौल ही बदल गया. 2014 में मतदान बढ़कर 58.35 प्रतिशत और 2019 में 59 प्रतिशत हो गया. इन सबके बीच सबसे बड़ी बात ये रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे नंबर के प्रत्याशी के बीच का अंतर भी बढ़ता गया.
पीएम मोदी ने बदला राजनीतिक समीकरण :
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 56.37 फीसदी वोट मिले जो वाराणसी में एक विजेता के तौर पर तीसरा सबसे ज्यादा वोट शेयर था. इस साल अरविंद केजरीवाल जो पहले रनर-अप थे, उन्हें मात्र 20.30 फीसदी वोट हासिल हुए. 2019 में पीएम मोदी का वोट शेयर बढ़कर 63.62 प्रतिशत हो गया, जो ऐतिहासिक रूप से वाराणसी के इतिहास में दूसरे स्थान पर था, जबकि फर्स्ट रनर-अप का वोट शेयर घटकर 18.4 प्रतिशत रह गया. 1977 में वाराणसी से जीत हासिल करने वाले को 66.82 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे.वाराणसी के साथ भाजपा का कार्यकाल 1984 में शुरू हुआ, जब पार्टी के उम्मीदवार ओम प्रकाश सिंह 12.7 प्रतिशत वोट हासिल करके चौथे स्थान पर रहे. इसके बाद जल्द ही 1991 में एक जीत का चलन बन गया, जब भाजपा के श्रीश चंद्र दीक्षित ने 41 प्रतिशत वोट हासिल कर जीत हासिल की. श्रीश चंद्र दीक्षित को इस चुनाव में उपविजेता रहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज किशोर से 9 प्रतिशत अधिक वोट हासिल हुए.
1996, 1998 और 1999 के आम चुनावों में वाराणसी ने भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल को चुना. उन्होंने 45 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए. साल 2004 बीजेपी के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ. साल 2004 के चुनाव में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल को कांग्रेस के राजेश मिश्रा से हार मिली. इस चुनाव में भाजपा को 24 प्रतिशत वोट हासिल हुए. चुनाव दर चुनाव जायसवाल के गिरते वोट शेयर से इस बात का अंदाजा लग चुका था कि वह सीट पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे थे, यही कारण है कि साल 2004 में उन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा. अगर शंकर प्रसाद जायसवाल निर्वाचन क्षेत्र के लिए कुछ भी महत्वपूर्ण किए बिना तीन बार जीत सकते हैं, तो यह बताता है कि उस समय वाराणसी भाजपा के लिए कितनी सुरक्षित सीट हो गई थी.|