भोपाल;घर-मस्जिदों में चल रहे मदरसे

इंडिया फर्स्ट ब्यूरो।

मध्यप्रदेश में एक हजार से ज्यादा मदरसे सरकार के रडार पर हैं।

मध्यप्रदेश में एक हजार से ज्यादा मदरसे सरकार के रडार पर हैं। इनमें सबसे ज्यादा 188 मदरसे भोपाल में हैं। ये वो मदरसे हैं जिनका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। मदरसों की जमीनी हकीकत जानी तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आईं। कई मदरसे बंद मिले तो कुछ जगह पर ट्यूशन की तरह धार्मिक पढ़ाई कराई जा रही है। रजिस्टर्ड मदरसे चलाने वालों का कहना है कि चुनावी साल में मदरसों का नाम बार-बार इसलिए लिया जा रहा है, ताकि इससे राजनीतिक लाभ लिया जा सके।हाल ही में लॉ एंड ऑर्डर को लेकर हुई एक बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि उन्हें ऐसी जानकारी मिल रही है कि कई मदरसों में कट्टरता सिखाई जा रही है, जो किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी। भाजपा के कई नेता भी पूर्व में ऐसे बयान दे चुके हैं।

हाल ही में लॉ एंड ऑर्डर को लेकर हुई एक बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि उन्हें ऐसी जानकारी मिल रही है कि कई मदरसों में कट्टरता सिखाई जा रही है, जो किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी। भाजपा के कई नेता भी पूर्व में ऐसे बयान दे चुके हैं।इसके बाद स्कूली शिक्षा विभाग ने ऐसे मदरसों की सूची बनाई जिनकी डिटेल जानकारी नहीं है। इन मदरसों के बारे में सरकार को ये नहीं पता है कि यहां कितने बच्चे पढ़ रहे हैं, फंडिंग कहां से हो रही है? शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक ये सूची पिछले सालों में दिए गए पंजीयन के आवेदन के आधार तैयार हुई है। सूची के मुताबिक 1066 मदरसे हैं, जो सरकार के रिकॉर्ड में नहीं हैं। इनमें 51 मदरसे इंदौर, 45 ग्वालियर, 40 जबलपुर और 22 उज्जैन में हैं। शिक्षा विभाग दस बिंदुओं पर इन मदरसों का सर्वे कराएगा, जिसकी जिम्मेदारी हर जिले के डीईओ को दी गई है।

कई मदरसों का कोई अता-पता नहीं

सूची में शामिल एक मदरसे की पड़ताल करते हुए हम भोपाल के बाग फरहत बड़ी मस्जिद पहुंचे। सूची में इस मदरसे का नाम शुरुआत में ही था। मगर राहत-उल-उलूम नाम के इस मदरसे के संचालक मो. मुनीर ने हमें बताया कि उनके मदरसे को बंद हुए पांच साल से ज्यादा हो गए हैं। सरकार से उन्हें किसी भी तरह का अनुदान नहीं मिल पा रहा था, जिसके कारण मदरसे को चलाना मुश्किल हो गया था।जब हमने उनसे यह सवाल किया कि वे तो कभी सरकारी रिकॉर्ड में थे ही नहीं, तो सरकार अनुदान कैसे देती? इस पर उन्होंने कहा कि राहत-उल-उलूम मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त था और अब चूंकि बंद हुए काफी साल भी हो गए तो पता नहीं फिर उस सूची में इसका नाम क्यों है? इसी तरह सूची में मौजूद कई मदरसों की हमने पड़ताल करने की कोशिश की, लेकिन अब वो कहीं भी संचालित नहीं है।

 एसपीक्यूईएम योजना के तहत वेतन का प्रावधान

मदरसा शिक्षा आधुनिकीकरण के लिए भारत सरकार की स्कीम टू प्रोवाइड क्वालिटी एजुकेशन इन मदरसास (एसपीक्यूईएम) के अंतर्गत स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षकों को भी वेतन मिलता है। स्नातक शिक्षक को 6 हजार और स्नातकोत्तर को 12 हजार रुपए महीने मिलते हैं। मगर बीते पांच सालों से पूरे देश में मदरसा शिक्षकों को उनका वेतन नहीं मिला है। मध्यप्रदेश के मदरसा शिक्षकों ने इसे लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया था, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला।एक अन्य मदरसा संचालक अफसर खान यह आरोप लगाते हैं कि मदरसों पर यह बयानबाजी आमतौर पर तब होती है, जब या तो कोई चुनाव होता है या हमारा सेशन खत्म होने को होता है। जब एक मजदूर अपना काम खत्म करके मजदूरी की आस में रहता है, तब ये तोहमत लगा दी जाती है। नहीं तो फिर चुनाव के समय अपना राजनीतिक लाभ लेने के लिए मदरसों पर इस तरह की टिप्पणियां की जाती हैं।कुछ अन्य संचालक बताते हैं कि वे बमुश्किल अब मदरसे को चला पा रहे हैं। कोई भी शिक्षक जो उनके यहां सेवा देते हैं वे ये उम्मीद तो करते हैं कि इसके बदले उन्हें उचित वेतन या भत्ता मिलेगा। संचालक किसी भी तरह से व्यवस्था करके इसे चलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकार से उनकी यही मांग है कि बच्चों को तालीम दी जाने वाली जगह के साथ भेदभाव की राजनीति ना की जाए और जल्दी से जल्दी अनुदान के पैसे भेजे जाएं, जिससे कि मदरसों की स्थिति बेहतर हो सके। ।indiafirst.online

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