
इंडिया फर्स्ट। भोपाल।
मप्र भाजपा की चुनाव समितियों की घोषणा कर दी गई है। इन समितियों में कई नामों पूर्व अपेक्षित और चर्चित है लेकिन इनमें कई ऐसे नामों का ना होने से, राजनीतिक सुगबुगाहट शुरु हो गई है। दरअसल, भाजपा की चुनाव तैयारी की अलग अलग समितियों में, भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री गोपाल भार्गव, कुं. विजय शाह, गौरीशंकर बिसेन जैसे नामों का ना होना कई सवाल खड़े कर रहा है।
इनमें से कई नेता, लगातार चुनाव जीतने के एक्सपर्ट माने जाते है। ऐसे में भाजपा के लिए एंटी इनकम्बेंसी के सबसे कठिन चुनावों में इन नामों को किसी भी समिति में शामिल नही करना, पार्टी के भीतर चल रही अलग सोच की ओर इशारा कर रही है। इन समितियों में कई ऐसे नाम भी है जो कि पार्टी के खिलाफ़ तीख़े तेवर दिखा चुके है । तो क्या इन समितियों का मकसद सिर्फ, पार्टी के भीतर चल रहे अंतर्रविरोध को खत्म करना है या वाकई भाजपा, मप्र में चुनावी रणनीति में जीत की गारंटी माने जाने वाले नेताओं के अनुभव का लाभ लेना चाहती है। पार्टी के भीतरी सूत्रों की माने तो , आला नेतृत्व, पार्टी के भीतर गतिरोध और भीतरघात को सबसे बड़ी चुनौती मान रही है।
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि, अगर मप्र में भाजपा ने आपसी फूट को काबू में कर लिया तो चुनाव जीतना उनके लिये आसान हो जायेगा। ऐसे में पार्टी में उन चेहरो को ज्यादा जगह दी गई है जिनके बगावती बयानों और तेवरों का इस्तेमाल विपक्षी कांग्रेस कर सकती है। हालांकि, ऐसे में, पार्टी के उन नेताओं को जरुर निराशा हाथ लग रही है जो कि अपनी अपनी विधानसभा क्षेत्रों में कोई एक दो बार से नही बल्कि कई कई बार से लगातार चुनाव जीतने का कीर्तिमान स्थापित कर चुके है। ऐसे में कही भाजपा का सिर्फ एक पक्ष पर विचार और अन्य महत्वपूर्ण पक्षों को नज़रअंदाज़ करना, चुनावी चक्रव्यूह में, भारी ना पड़ जाये। पॉलिटिक्स फर्स्ट। इंडिया फर्स्ट।